चक्रवर्ती विक्रमादित्य…।।।।।।।
कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य मालव का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया।
विक्रमादित्य मालव ईसा मसीह के समकालीन थे और उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था। विक्रमादित्य मालव के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में भी वर्णन मिलता है। नौ रत्नों की परंपरा उन्हीं से शुरू होती है। विक्रमादित्य मालव उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे।
विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे। विक्रमादित्य मालव अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।
देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य मालव द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं। इसके अनुसार विक्रमादित्य मालव ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य मालव के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है।
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्की, अफ्रीका, सऊदी अरब, नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कमबोडिया, श्रीलंका, चीन का बड़ा भाग इन सब प्रदेशो पर विश्व के बड़े भूभाग पर था ओर इतना ही नही सम्राट विक्रमादित्य मालव ने रोम के राजाओं को हराकर विश्व विजय भी कर लिया था।
“यो रूमदेशाधिपति शकेश्वरं जित्वा “।।
अर्थ: उन्होंने रोम के राजा और शक राजाओं को जीता। कुल मिलाकर 95 देश जीतें। आज भारत मे प्रजातंत्र है, लेकिन भारत में शांति नही है लेकिन इस प्रजातंत्र की नींव डालने की शुरुवात ही खुद महान राजा विक्रमादित्य ने की थी विक्रमादित्य की सेना का सेनापति प्रजा चुनती थी।
वह प्रजा द्वारा चुना हुआ धर्माध्यक्ष होता था प्रजा द्वारा अभिषिक्त निर्णायक होता था आज के समय मे अमरीका और रूस के राष्ट्रपति की जो शक्ति है वही शक्ति महाराज विक्रमादित्य मालव के सेनापति की होती थी। लेकिन यह सब भी अपना परम् वीर विक्रम को ही मानते थे। महाराज विक्रम ने भी अपने आप को शासक नही, प्रजा का सेवक मात्र घोषित कर रखा था।
महाराज विक्रम बहुत ही शूरवीर और दानी थे। शुंग वंश के बाद पंजाब के रास्ते से शकों ने भारत को तहस नहस कर दिया था लेकिन वीर विक्रम ने इन शकों को पंजाब के रास्ते से ही वापस भगाया। पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के बाद जो भारतीय असंगठित होकर शकों का शिकार हो रहे थे उन भारतीय को जीवन मंत्र देकर महाराज विक्रम ने विजय का शंख फूंककर पूरे भारत को संगठित कर दिया।
महाराजा वीर विक्रम जमीन पर सोते थे अल्पाहार लेते थे वे केवल योगबल पर अपने शरीर को वज्र सा मजबूत बनाकर रखते थे। इन्होंने महान सनातन राष्ट्र की स्थापना कर सनातन धर्म का डंका पुनः बजाया था।
महाभारत के युद्ध के बाद वैदिक धर्म का दिया लगभग बुझ गया था, हल्का सा टिमटिमा मात्र रहा था। इस युद्ध के बाद भारत की वीरता, कला, साहित्य, संस्कृति सब कुछ मिट्टी में मिल गयी थी।
ऐसा भी एक समय आया जब सारे भारतीय ही “अहिंसा परमोधर्म” वाला बाजा बजा रहे थे। विदेशों से हमले हो रहे थे ओर हम अहिंसा में पंगु होकर बैठ गये भारत के अस्ताचल से सत्य सनातन धर्म के सूर्य का अस्त होने को चला था। प्रजा दुखी थी, विदेशी शक, हूण, कुषाण शासकों के आक्रमणों से त्राहि त्राहि मची थी। ऐसे महान विपत्तिकाल में “धर्म गौ ब्राह्मण हितार्थाय” की कहानी को चरितार्थ करने वाला प्रजा की रक्षा करने वाला, सत्य तथा धर्म का प्रचारक वीर पराक्रमी विक्रम मालव पैदा हुए।
इनके पराक्रम का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि जावा सुमात्रा तक के सुदूर देशों तक इन्होंने अपने सेनापति नियुक्त कर रखे थे।
उत्तर पश्चिमी शकों का मान मर्दन करने के लिए मुल्तान के पास जागरूर नाम की जगह पर महाराज विक्रम और शकों के भयानक युद्ध हुआ। विशेषकर राजपुताना के उत्तरपश्चिमी राज्य में शकों ने उत्पात मचा रखा था। मुल्तान में विक्रम की सेना से परास्त होकर शक जंगलो में भाग गए उसके बाद इन्होंने फिर कभी आंख उठाने की हिम्मत नही की लेकिन उनकी संतान जरूर फिर से आती रही।
विक्रमादित्य मालव के काल के सिक्कों पर “जय मालवाना” लिखा होता था विक्रमादित्य के मातृभूमि से प्रेम से इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है सिक्को पर अपना नाम न देकर अपनी मातृभूमि का नाम दिया।
आज हमारी सनातन संस्कृति केवल विक्रमादित्य मालव के कारण अस्तित्व में है अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था। भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था।
जब रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया। विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया।
विक्रमादित्य मालव के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे। आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है।
महाराज विक्रमादित्य मालव ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।
विक्रमादित्य मालव के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे। भारत में इतना सोना आ गया था कि, विक्रमादित्य मालव काल में सोने की सिक्के चलते थे।
कई बार तो देवता (श्रेष्ठ ज्ञानी व्यक्ति) भी उनसे न्याय करवाने आते थे, विक्रमादित्य मालव के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था। विक्रमादित्य मालव का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी और धर्म पर चलने वाली थी।
महान सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जैन की सड़कों पर घुमाया था तथा बाद में उसे छोड़ दिया गया था।
विक्रमादित्य के काल में दुनियाभर के ज्योतिर्लिंगों के स्थान का जीर्णोद्धार किया गया था। कर्क रेखा पर निर्मित ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख रूप से थे मुक्तेश्वर, गुजरात के सोमनाथ, उज्जैन के महाकालेश्वर और काशी के विश्वनाथ बाबा।
कर्क रेखा के आसपास 108 शिवलिंगों की गणना की गई है। विक्रमादित्य मालव ने नेपाल के पशुपतिनाथ, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों को फिर से बनवाया था। इन मंदिरों को बनवाने के लिए उन्होंने मौसम वैज्ञानिकों, खगोलविदों और वास्तुविदों की भरपूर मदद ली। विक्रमादित्य मालव के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे।
विक्रमादित्य तो एक उदाहरण मात्र है, भारत का पुराना अतीत इसी तरह के शौर्य से भरा हुआ है। भारत पर विदेशी शासकों के द्वारा लगातार राज्य शासन के बावजूद निरंतर चले भारतीय संघर्ष के लिए ये ही शौर्य प्रेरणाएं जिम्मेदार हैं।
हम सबको इस महान सम्राट से प्रेरणा ले कर राष्ट्र व धर्म की रक्षा में उद्यत रहना चाहिए एवं हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को जानना चाहिए।